औरत विधवा हैं लेकिन आदमी विधुर नहीं….

पहला परिदृश्य-:

      पहली बार देखा था उसे नजरों को भा गई थी… जिद पकड़ कर बैठ गया कि अब ब्याहेगा तो उसे ही। अगर किसी ने कहीं और शादी लगाई तो वह खुद को खत्म कर देगा। इतना प्यार हो गया था…हो गई शादी एक कामयाब शादी… एक प्यारा सा बेटा हुआ… बेटा 8 साल का हो गया..फिर जिंदगी में भूचाल आया और उस भूचाल में वह जिसे जिद करके लेकर आया था वह उसकी जिंदगी से क्या इस दुनिया से ही चली गई। बेटे की जिम्मेदारी सर पर आ गई। 1 साल उसने अकेले गुजार लिए। लेकिन कहते हैं ना कि आदमी की जवानी पहाड़ जितनी भीषण होती है काटे नहीं कटती… वो खुद घरवालों से कह आया उसे शादी करनी है किसी से भी… कोई भी जो उसे और उसके बेटे को संभाल ले। घर में एक नई दुल्हन आ गई।

अब दूसरे परिदृश्य में कदम रखते हैं-:

    एक औरत दो बेटियां(5-8) पति, सास-ससुर। इस कोरोना ने उसके पति को जो मुंबई में मजदूरी करता था उसे उसे छीन लिया। तीन बेटियों की ज़िम्मेदारी उस औरत पर आ गई। उस औरत की उम्र शायद आपको ज्यादा लग रही होगी क्योंकि मैं उसे औरत कह रही हूं लेकिन तीन बेटियों की मां थी समाजानुसर उसे लड़की कहना भी ठीक नहीं है लेकिन उसकी उम्र इतनी नहीं थी। उसकी शादी कम उम्र में हुई थी जैसा कि गांव में हमेशा होता है। जब उसको मालूम हुआ कि उसका पति अब नहीं रहा। तो वह न रोई न चीखी।  उसने अपने हाथ की चूड़ियां खुद तोड़ दी और सिंदूर मिटा दिया और उस कोने में जाकर बैठ गई जहां अक्सर उसका पति आकर बैठा करता था। किसी से बात नहीं करती ना कुछ खाती पीती हैं। अपनी बड़ी बेटी का रोना सुनकर के दूध रोटी गले के नीचे उतार लेती और फिर उसी कोने में जाकर बैठ जाती। सोने को लोग उसको उठाकर बिस्तर पर लेटा देते। लेकिन जब उसकी आंख खुलती वापस उसी जगह जा करके बैठ जाती। वो खुद को भूल गई। लोगों की माने तो वह पागल हो गई।

लेकिन कोई उसे जाकर नहीं कहेगा तीन बेटियों की जिम्मेदारी है क्या करोगी? दूसरी शादी ही कर लो। ना ही किसी के पास जाकर वो कह सकेगी कि मैं अकेली नहीं रह पा रही हूं मेरी शादी करा दो।

जब वो शादी करके आई होगी तो शायद उसने अपने पति को देखा भी नहीं होगा लेकिन जब मांग में सिंदूर पड़ा तो उसने सब कुछ उसे सौंप दिया और उसका घर संभाल लिया। अब जब वो चला गया तो उसकी विधवा बनके उसके कमरे में पड़ी रहती हैं एक कोने में चुपचाप…!

दूसरी ओर जब उस लड़के ने उस लड़की से शादी की तो वह उससे पहले उसके प्यार में पड़ चुका था लेकिन उसके मरने के बाद उसका प्यार खत्म हो गया। वह आज किसी और के साथ बहुत खुश है। या यूं कहूं कि जिस कमरे में वो उसके साथ रहा करता था। अब उस कमरे की ओर देखता तक नहीं है। अपने बच्चों के प्रति उसकी जिम्मेदारी अभी भी है लेकिन अब वो कुछ नहीं बोलता जब उसकी पत्नी उसके बच्चों के ऊपर हाथ उठाती हैं। वो उस लड़की का अब नाम तक नहीं लेता कि कहीं उसकी नई पत्नी ने सुन लिया तो रात कमरे के बाहर न बितानी पड़ जाए…!

अपवाद….अपवाद हो सकता है लेकिन भारतीय समाज की हकीकत यही है यह दो घटनाएं मेरे आंखों के सामने की है। पत्नी मरती है तो उसकी चिता की राख ठंडी ना हो पाए उससे पहले बेटे के घर का चूल्हा जलाने के लिए दूसरी बहुत ढूंढ ही ली जाती है लेकिन जब बेटा मरता है तो बहू को उसकी विधवा के तौर पर घर में शोपीस बनाकर रख लिया जाता है। मैं नहीं कहती कि दोबारा शादी करना गुनाह है लेकिन मैं यह कहती हूं कि सिर्फ एक पक्ष के लिए यह चरितार्थ होना उससे भी बड़ा गुनाह है।

3 thoughts on “औरत विधवा हैं लेकिन आदमी विधुर नहीं….

  1. ज्योति आपने बहुत शानदार लिखा है। यह सभी वास्तविकता है। पता नहीं विधवा को लेकर लोगों के दीमाग का भूसा कब खाली होगा।
    मेरे परिवेश में भी ऐसा कहने वाले कई नमूने हैं जो कहेंगे- यह बांझ हो गई, विधवा है, बला-बला…
    मुझे ऐसे लोगों पर बहुत खीज आता है।
    बहुत धन्यवाद आपका इसे लिखने के लिए 💕💐

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