वो तो जानवर थे काश तुमने इंसानियत दिखाई होती..

इंसानियत…ह्यूमैनिटी…दया संवेदनशीलता…यह सब महज शब्द है। जो किताबों में कहीं खो गए हैं। इनका आखिरी बार इस्तेमाल कब किया था? याद हैं आपको?  यह आपको और हमें याद तक नहीं।

हम इंसान तो इंसानों के साथ इंसानियत नहीं करते फिर जानवरों के साथ इंसानियत करेंगे कोई सोच भी कैसे सकता है?


आज पहली बार एक इंसान होने पर एक अजीब सी शर्म महसूस हो रही है कि मुझ जैसे ही कुछ लोग जिनमें शायद बुद्धि की जगह कोई अन्य पदार्थ भरा होगा, जिनमें संवेदनहीनता अपने चरम पर होगी, जिनके दो हाथ पैर तो हैं लेकिन जिनका मन पशु प्रवृत्ति का होगा। ऐसे लोग इस दुनिया में है.. इस दुनिया में क्या हमारे देश में है
… केरल में है… या यूं कहें हर जगह है…!

शास्त्रों में लिखा है कि ब्राह्मण,स्त्री, गौ और निहत्थे व्यक्ति पर कभी हमला नहीं करना चाहिए। लेकिन एक गर्भवती चाहे वह महिला हो जब कोई पशु.. जिसके पेट में एक अन्य जीव पल रहा हो…जो कुछ दिनों या कुछ महीनों बाद इस दुनिया में आएगा सांस लेगा.. ऐसी एक गर्भवती जीव को पटाखे खिलाकर मार देना क्या ये सही है..? यह हमारी शास्त्रों में नहीं बताया? क्योंकि हमारे शास्त्र लिखने वालों को भी अंदाजा नहीं होगा कि यह शास्त्र जिन इंसानों के लिए लिखा जा रहा है वो कभी इतनी हद तक गिर कर जानवर भी हो जाएंगे।

केरल के मल्लपुरम में आज सिर्फ एक जीव की हत्या नहीं हुई है बल्कि दो निर्दोष प्राणी मौत के घाट उतारे गए हैं.. यह लिखते वक्त मेरी उंगलियां भी कांप रही हैं मगर उस अनानास में पटाखे भरते और उस हथिनी के सामने परोसते समय उनके हाथ नहीं कांपे होगे..। वो अपनी मां की कोख में मां के द्वारा ली गई सांस से सांस ले रहा होगा.. अपने जीवन में आने वाले दौर से अनजान होगा..लेकिन वह जिंदा होगा… कितना खुशी हुई होगी उस हथिनी को जब उसे एक अनानास मिला होगा। जानवर की ये प्रवृति होती है कि वो इंसानों द्वारा दिए जाने वाले कोई भी चीज को इस विश्वास से खा लेते हैं इंसान है इंसानियत दिखाएगा लेकिन अब इंसानियत है ही नहीं…अनानास में पटाखे भरे गए थे और इसका इस्तेमाल जंगली सूअर को भगाने के लिए किया जाना था लेकिन कुछ अराजक तत्व या यूं कहूं इंसान के रूप में जानवर…जानवर नहीं..इनके लिए तो कोई नया शब्द गढ़ना पड़ेगा। उन्होंने वो अनानास हथिनी को खिला दिया। क्या आप सोच सकते हैं किसी के पेट में पटाखे… रूह कांप जाती है सोचकर..वो भी एक गर्भवती जीव के अंदर… और अंत में क्या हुआ अंतहीन दर्द को सहते हुए उस हथिनी ने एक नदी में खड़े खड़े अपनी जान दे दी। खुद मर गई उसकी कोख में पल रहा छोटा हाथी का बच्चा भी मर गया और अब हम सिर्फ अफसोस कर सकते हैं सोशल मीडिया पर सिर्फ पोस्ट ही डाल सकते हैं।


कभी कुत्ते के बच्चे के साथ कुकर्म किया जाता है, कभी किसी कुत्ते को हाथ पैर बांध के नदी में फेंक दिया जाता है,घर के नीचे बैठे जानवर पर सिर्फ इसलिए गर्म पानी डाल दिया जाता है कि दोबारा उस जगह पर ना बैठे और हम कहते हैं हम इंसान हैं… जानवरों के साथ जानवरों का बर्ताव करते हैं और कहते हैं हम इंसान हैं… क्या हम इंसान हैं? आज इस वाक्य पर एक बड़ा सा प्रश्न चिन्ह लग गया है कि क्या हम इंसान हैं?????????

उन लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई होगी नहीं पता उस हथनी की तरफ से कौन-कौन आएगा नहीं पता। बस उम्मीद है यकीन है कि भारत देश में कानून का राज है और यहां पर जानवरों के लिए भी कानून है। इंसानियत तो हार ही चुकी है अब तो बस कानून का सहारा है!

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