..और बस एक गलती..

हाथ पकड़कर घसीटते हुए अंश श्रेया को लिए जा रहा था ‘भैया बात सुनो गलत समझ रहे भैया दर्द हो रहा’…

अंश गुस्से में चिल्ला रहा था ‘ये पढ़ाई चल रही नाक कटा दी चलो घर…!’

नितेश भी श्रेया और अंश के पीछे चला जा रहा था ‘सुनिए तो आप…’

अंश ने नितेश को खींच के थप्पड़ मारा और बोला ‘तू भी चल साथ आज दिखाते हैं तुमको औकात’ नितेश श्रेया का रोता चेहरा देख रहा था वो उसे अकेला नहीं छोड़ सकता था और इस हाल में तो कतई नहीं।

आखिर क्यों अंश अपनी ही बहन को जिसे वो फूल सा मानकर रखता था आज उसके हाथ बेदर्दी से खींचता ले जा रहा था। तो आज यहां भी वही हुआ था जो होता आया हैं सदियों से…!

एक दिन पहले

‘मैं यही हूँ तुम्हारे शहर में मिलोगी नही’ नितेश ने श्रेया को मैसज किया।

नितेश और श्रेया का रिश्ता दूरियों में भी बेहद मजबूत हो गया था। कई साल से दोनों की जान पहचान थी दोस्ती फिर मोहब्बत और आगे सात फेरों के वादे थे।

‘क्या सच मे…ओह मैं कितनी खुश हूं…पर कैसे मिले’ श्रेया कुछ पल की खुशी के बाद डर के बोली।

‘मैं आऊंगा जहाँ भी तुम बोलो…? नितेश ने दिल के इमोजी के साथ मैसेज किया।

‘तुम आओ…यहीं से चलेंगे कहीं’ श्रेया ये पहली मुलाकात नही छोड़ना चाहती थी।

लेकिन जब दोनों मिले उसकी खबर श्रेया के भाई अंश को मिल गयी और सबकुछ छोड़ के अंश वहां पहुँच गया। और अब वो दोनों को ही घर ले जा रहा हैं…

घर पहुँचते ही उसने नितेश को मारना शुरू कर दिया लात-घूंसों से और श्रेया को धकेल दिया… वो दीवार से जा टकराई। पापा ने उसे थामा ही था कि अंश ने रट्टू तोता की तरह सब बकना शुरू कर दिया।

उसके एक-एक शब्द पिता की छाती में तीर की तरह चुभ रहे थे..घर मे मानो किसी की मौत हो गयी हो ऐसा सन्नाटा था। बेटी को एक हाथ से पकड़े रामशरण ने एक थप्पड़ रसीद दिया। तभी नितेश ने उन्हें रोकने की कोशिश की मगर मानो पूरा घर आज क्रोध की अग्नि में जल रहा था कि आखिर एक लड़की ने इतनी हिम्मत की कैसे? नितेश को पड़ रहा हर थप्पड़ श्रेया महसूस कर रही थी…

वो ज़मीन पे बैठी हुई थी पापा के पैरों को पकड़े हुई! ‘आप बात सुनिए मैं बताती हूँ’

मगर आज तो वो अपराधिनी थी जिसकी हर बात झूठ होगी।

‘कब से चल रहा कब से मिल रही तू बोल..? ‘

तमाम बातें सुनाई गई इज्जत मिट्टी में मिला देने के ताने, नाक कटा देने के आरोप….और जब सारा गुस्सा उतर गया जब नितेश को मार-मार थक गए तब उसका नाम पूछा गया…नाम और जाति सुनकर औऱ मारा गया…

“एक तो प्यार कर आई उसपे से लड़का दूसरी जाति का”

आज घर के मर्द ही बोल रहे थे बोल क्या ज़हर उगल रहे थे। मौका था एक बाप के कंधों को झुकाने का। अपने सारे बदले लेने का। एक बाप को ये बता देने का बेटियों को घर के जंजीरो में कैद कर रखे..

रामशरण ने बेटी को उठाया और नितेश की ओर धकेल दिया “निकल शक्ल न दिखाना मर गयी तू…मर गयी श्रेया..अंश की मां एक ही बेटा हैं अब.. श्राद्ध कर रहा मैं इसका। घर से निकल।”

नितेश ने श्रेया का हाथ पकड़ लिया। मगर श्रेया हाथ छुड़ाकर पापा के गले जा लगी “नहीं..नही पापा मैं सच मे मर जाऊंगी ऐसा न करो पा…..सुनो पापा हमने कुछ गलत नही किया पापा आप सुनो तो…

मगर आज रामशरण का दिल पत्थर था। उसने श्रेया को धकेल दिया। इस बार भी नितेश ने उसे थामा। अंश ने दोनों को दरवाज़े तक छोड़ दिया “अब तू मर गयी..औऱ तू मिल मत जाना बेटा कहीं… काट डालूंगा…”

श्रेया दरवाज़े पे बैठ गयी मगर दरवाजा बन्द कर दिया गया। उसे उम्मीद थी अभी कोई तो आएगा जो उसे वापस अंदर ले जाएगा…

‘छोड़ो हाथ मां आएगी अभी देखो तुम…दीदी..दी ज़रूर आएगी’ श्रेया नितेश से बोली। घन्टो वो दोनों दरवाजे पर बैठे रहे। रात बढ़ रही थी। श्रेया की उम्मीद भी घर की लाइटों के साथ बुझा दी गयी…

‘कोई नहीं आएगा..कोई आया भी नहीं हैं चलो..कबतक यहां ऐसे ही बैठी रहोगी’ नितेश ने उसके चेहरे को अपने हाथों में भरते हुए कहा।

‘तुम जाओ अपने घर..मैं नही जाऊंगी..तुम निकलो यहां से.. माँ आएगी अभी जाओ जाओ तुम जाओ’ कैसे चला जाये वो उसे इस हाल में छोड़कर…

‘नहीं जाऊंगा..चलो मेरे साथ उनके लिये मर गयी तुम समझ क्यों नही रही’ श्रेया मानो पत्थर हो रही थी। बस एक टक कभी दरवाजा देखती कभी छत की ओर।

नितेश ने उसे गोद मे उठा लिया ‘अब बस चलो यहां से..’। उतारो मुझे मां आएगी और मैं नही मिलूंगी गुस्सा होगी वो…,,उतारो मुझे…’ मगर नितेश उसे लिये जा रहा था कुछ दूर चलने पर वो खामोश हो गयी या यूं कहें उसका कमजोर दिल और शरीर अब थक गया था वो बेहोश हो गयी। नितेश उसे लेकर बस में बैठ गया।

‘क्या करूँ कहाँ ले जाऊ… ये इस हाल में नही हैं.. कुछ पूछ भी नही सकता…मगर वहां इसे नही छोड़ सकता’ इन हज़ार ख्यालों के साथ वो खुद को समझाता ही रहा और गाड़ी चल पड़ी। श्रेया का सर अपने कंधे पे रखे उसके कानों को अपने रुमाल से ढक कर ताकि उसे रात की ठंडी हवा न लगे वो चुप चाप बैठ गया।

सोचते-सोचते न जाने कब वो अपने शहर आ गया। उसे लेकर उतरा। ऑटो किया और कुछ दूर ही ऑटो रुकवा दिया। उसने खुद की और श्रेया का हाल देखा ऐसे तो घर नहीं जा सकते सोचा। उसने श्रेया को थामा और आगे बढ़ा उसके लिये कपड़े लिये। मगर श्रेया का होश में होना न होना एक था…नितेश ने खुद उसके कपड़े बदले, उसका चेहरा धोया बाल ठीक किये…खुद का चेहरा तो उसने साफ कर लिया था मगर चोट के निशान ताजे थे…! उसने ऑटो किया।

घर पहुँचने पर घर की लाइट ऑन पाकर वो समझ गया। माँ उसका इंतजार कर रही हैं। उसने डोर बेल बजाई ही कि दरवाजा खुल गया। ‘था कहाँ इतनी देर कोई बाहर रहता….’ बोलते बोलते माँ खामोश हो गयी। जब नितेश की बाहों में लिपटी श्रेया की ओर उनकी निगाह गयी।

‘कौन हैं ये ..ये क्या हैं बोल क्यों नही रहा’ माँ के सवालों पर नितेश अंदर आ गया औऱ एक हाथ से दरवाजा बंद किया। तभी नितेश की भाभी और घर की बड़ी बहू शीला आ गयी।

‘अरे राम ये कुछ क्या हैं कौन को ले आये भैया लड़कीं नशे में है क्या’ नितेश सबको नजरअंदाज करता हुआ श्रेया को सोफे पर लिटा आया।

‘कौन हैं ये बाबू बोल तू क्यों लाया इसे’ माँ ने बेटे को बाहों में भर लिया। नितेश के गर्दन-चेहरे की चोट देख चीख पड़ी। माँ को बिठाते हुए नितेश ने सारी बातें बता दी। उसे उम्मीद थी माँ समझेंगी।

‘भगा के लाया हैं इस लड़कीं को…प्यार-व्यार कुछ नही होता हैं पागल न बन उठा इसे भेज वापस..!’ माँ के अल्फ़ाज़ आज वो नही थे जो हमेशा से थे..

…’माँ उन्होंने श्राद्ध किया हैं वो कहाँ जाएगी आप तो समझो..’ ‘जहां जाना हैं जाए भाड़ में चली जाए हमे मतलब नही तुझे भी नही हैं समझा’ माँ ने कहा।

‘सबसे पहले इसे सोफे से हटा..पता नहीं जाति-पाति क्या हैं’ माँ को उसकी ओर बढ़ता देख वो बीच मे आ गया। ‘नहीं माँ आप उसे हाथ नही लगायेगी।’ नितेश उसके पास सोफे पे बैठ गया। श्रेया का चेहरा देखते हुए। वो उसे पकड़कर यूँ बैठ गया मानो अब वो उसी की अमानत हो।

‘हे भगवान क्या हो गया इस लड़के को..माँ ने सर पकड़ लिया। बड़ी बहन जो कुछ दिनो के खातिर मायके आई थी। उसने मां को समझाना चाहा मगर मां कुछ समझ कहाँ रही थी। ‘रख इसे तू नही जी पायेगा न इसके बिना तो माँ के बिना जी ले.. अब नही रहूंगी तेरे पास मैं’ नितेश सोफे से उठ गया माँ को पकड़ लिया ‘अब आप तो ऐसा मत करो न माँ… मैं पागल हो जाऊँगा।’ नितेश रो पड़ा तो दीदी ने उसे सम्भाल लिया।

बेटे का मोह जीता…माँ रुक गयी मगर अपनाने को तैयार नही थी। उन्होने तो शक्ल भी ठीक से नही देखी मगर श्रेया से नफरत कर बैठी। ‘तेरे पापा करेगे फ़ैसला कल आ रहे हैं..’

‘ठीक हैं’ ‘खाना खा चल’ माँ ने नितेश का हाथ पकड़कर अपने साथ ले जाना चाहा मगर नितेश ने श्रेया का हाथ पकड़ रखा था..वो माँ को रुआंसा होकर देखने लगा। दीदी ने खाना लाकर मेज पर रख दिया।

नितेश श्रेया को अपने कमरे में लेकर चला गया। उसके अंदर दबा तूफान कमरे में फूट पड़ा। श्रेया को लिटाते हुए आखिरकार वो रो पड़ा। वो सिसकियां इतनी तेज थी कि श्रेया चौक कर उठ गई….

ज़मीन पर बैठे नितेश पर उसकी नजर गयी। उसे पहले तो ये समझना था कि वो हैं कहाँ मगर नितेश की हालत देख वो बेड से नीचे आ गई। उसने नितेश को बाहों में भर लिया…’ऐसे मत रो..मैं हूँ.. नितेश नहीं मत रो..आई एम सॉरी..! ” नही रो अब तुम ऐसे रोगे मैं सच मे मर जाऊँगी’ नितेश खामोश तो नही हुआ मगर उसने सिसकियां रोक ली।

श्रेया को थामे वो उठा उसे बिस्तर पे बैठाया ‘तुम्हें बुखार हैं क्या’ श्रेया के माथे पर हाथ लगाते हुये वो बोला। ‘होने दो तुम पहले यहां बैठो’ उसने नितेश को अपने पास बैठा लिया। बैठते हुए नितेश ने कहना शुरू किया ‘मेरे घर पर हैं हम..कल पापा आएंगे…डिसाइड करेगे क्या होगा’।

‘क्या डिसाइड करेगे?’ ‘यही की हम साथ रहेंगे या नहीं’ नितेश ने जवाब दिया।

‘मैं न मिलने को राज़ी होती न ये अब होता..देखो तुम कुछ मत करो कल बस मुझे वापस जाने दो, मैं मेरे घरवालों को मना लूँगी… आखिर पापा हैं मेरे।’ ‘नही अब नही जाओगी तुम वहाँ उनका सुलूक पापा जैसा नही था…मैं नही जाने दूंगा अब बस हम साथ रहेंगे… तुम खाना खाओ..!

मगर खाना सिर्फ एक आदमी के लिये ही था। श्रेया ने थाली उठायी। ‘तुम खाओ मैं आता हूँ’ नितेश बहाना करके वहाँ से जाने लगा। हाथ पकड़े हुए श्रेया ने उसे रोक लिया..’इतना मैं अकेले नहीं खा पाऊंगी इतना कहाँ खाती हूँ मैं?’…उसने रोटी का टुकड़ा जब नितेश के मुँह में डाला तो उसके हाथों पर नितेश के रोके आँसू गिर ही गये। श्रेया ने बिन कुछ कहे उसके झुके चेहरे को बिना उठाये हाथों से उन आँसुओ को पोछ दिया।

वो रात बहुत मुश्किल से गुज़री…नींद दोनों के ही आंखों में नही थी…करवटे बदलते रात गुज़र गयी..!

सुबह की धूप चेहरे पर पड़ी तो श्रेया उठ गई। नितेश का चेहरा देख उसने उसके माथे पर हाथ फेरा ही कि नितेश जग गया…शायद वो सोया ही नही था। ‘मैं हूँ ..’ श्रेया ने उसे वापस लिटाते हुए कहा। ‘हां जानता हूँ…क्या हुआ वाशरूम तो नहीं जाना’ नितेश के सवाल पर श्रेया ने सिर हाँ में हिलाया।

नितेश उसे हाथ पकड़ कर वाशरुम ले गया खुद बाहर खड़ा हो गया। तभी माँ ने उसे वहाँ देखा ‘अब बस तू यही कर’ माँ की बात को उसने अनसुना करते हुए माँ के पास गया श्रेया उसके पीछे ही थी। ‘तुम रूम में जाओ मैं आता हूँ’ नितेश उसे मां से दूर रखना चाहता था। श्रेया चली गयी। ‘माँ उसके लिये कपड़े चाहिए, आप भाभी या दीदी से बात करेगी’ नितेश सिर झुका के बोला।

‘जा कमरे में मेरे जो सही लगे साड़ी ले ले शीला से मांगने की ज़रूरत नही हैं वैसे भी वो लड़कीं अब जल्द ही यहाँ से चली जाएगी मेरी तरफ से न्यौछावर समझ लेना’ मां का गुस्सा अभी तक नही उतरा था। नितेश ने मां के कमरे से एक साड़ी उठा ली और अपने कमरे में आ गया।

‘नहाकर यही पहन लो मां की हैं’ नितेश ने श्रेया को साड़ी थमाते हुये कहा। श्रेया ने नहाकर वही साड़ी पहन ली। नितेश अपने पापा को स्टेशन लेने चला गया।

घर में मचा असमंजस के माहौल से शिवनारायण बिल्कुल अनजान थे मगर बेटे को गुमसुम देख ज़रूर सोच मे पड़ गए।

घर पहुँचे सामान रखा कि पानी देने के बहाने बड़ी बहू बोळ् पड़ी ‘क्यों भैया छोटी बहू को बुलाओ पैर छुए आके’। शिवनारायण का चेहरा तमतमा उठा। ‘क्या बक रही हो होश में हो’ तभी माँ बोल पड़ी ‘होश तो इस बावले के उड़े हैं…लड़कीं भगा लाया हैं ऊपर हैं इसके कमरे में बताइए क्या करें अब?’ नीचे का सारा शोर जब श्रेया के कान में गया वो कमरे से बाहर आ गई…’वो देखिए पापाजी वो रही लड़कीं माफी …माफी… आपकी छोटी बहू’ शीला ने फिर ज़हर उगला।

सभी की नज़रे अपनी ओर देखके श्रेया को समझ नही आया वो क्या करें… उसने सिर पर पल्ला डाल घूंघट कर लिया। ‘कौन हैं कहाँ की हैं और यहां क्यों हैं नितेश?’ पिता के सवालों का उसने जवाब दिया मगर पिता की असहमति से वो वाकिफ़ था। ‘कतई नहीं.. क्यों लाया तू यहाँ चाहे श्राद्ध करें मार दे तू कौन हैं उसके घरेलू मामलों में दखलंदाजी करनें वाला,जा बैठा के आ बस में भेजो वापस’ पिता के सुर मां से कुछ अलग नही थे।

उसने हर गलती के लिये पापा से अक्सर बचा लेने वाली मां की ओर देखा, मायके के मामलों में न पड़ने की कसम खायी बहन को देखा और फिर ऊपर कमरे के बाहर खड़ी उस लड़की को देखा जो शायद आज इन सबकी वजह थी। ‘पापा नही छोड़ सकता मैं…आप भले मुझे छोड़ दो’ उसने एक झटके में अपनी ज़िंदगी का इतना बड़ा फैसला ले लिया।

‘ठीक हैं तू अपना हिस्सा ले और घर छोड़’ पिता भी अपनी बात पर अडिग थे। मां ने सोचा था पिता की बात लड़का नही टालेगा मगर दाव उलटा पड़ चुका था।

मां गुस्से में उठी और श्रेया को घसीटते हुए नीचे ले आयी…’सब की वजह तू हैं क्यों आई तू मेरा घर तोड़ दिया तूने’ नितेश ने श्रेया को अपनी ओर खींच लिया ‘मां आप क्या कर रही’….! घर मानो अखाड़ा बन चुका था। ‘अगर ये सुलूक हैं आपका तो मैं अभी चला जाऊंगा’ नितेश ने कहा। ‘ठीक हैं तू नोयडा वाला घर तेरे नाम.. उसे अपना हिस्सा समझ और भूल जा कि मां-बाप भी हैं तेरे।’ शिवनारायण ने आखिरी फैसला सुनाया।

नितेश ने वॉलेट उठाया। श्रेया का हाथ पकड़कर निकलने लगा कि मां तड़प उठी ‘नहीं बाबू मत जा क्या करूंगी मैं तेरे बिना यहां मेरा बच्चा…’ दीदी ने श्रेया के सामने हाथ जोड़े। मां का रोना-बहन की हालत देख श्रेया से रहा न गया उसने नितेश से अपना हाथ छुड़ा लिया और बोली ‘मुझे स्टेशन छोड़ दे आप मैं वापस जाना चाहती हूं…’। ‘हाँ जाओ जाओ बख्श दो मेरे बेटे को’ आज मां की हर निर्मम आवाज़ मानो नितेश को मां से दूर कर रहे थे। उसके बिना कहे ही सब समझ लेने वाली उसकी प्यारी मां आज उसके हालात से इतनी बेखबर कैसे हो गयी..?

श्रेया जाने लगी दहलीज़ लांघती की रुक गयी और मुड़कर बोली ‘मगर मेरे पास किराये के पैसे नहीं हैं’… नितेश से रहा नही गया उसने रोकर उसे गले लगा लिया। ‘बस हो गया आपका सबका…तुम कहीं नही जा रही अकेले तो बिल्कुल नहीं मैं चल रहा तुम्हारे साथ अपनी बाकी बची ज़िंदगी बिताने’।

अब जो दोनों निकले तो मुड़ कर नही देखा।

दोनों नोएडा को निकले थे मगर वहां क्या होगा कैसे होगा पता नहीं। ‘हम ऐसे नही जायेगे…हमे शादी कर लेनी चाहिए…’ नितेश ने कहा। ‘कोई साथ नही हैं गवाह भी तो नही हैं’ श्रेया ने पूछा। ‘दोस्त इसी दिन के लिये होते हैं…तुम्हे किसी को कॉल करना हैं तो कर लो’….दोनों ने अपने दोस्तों को कोर्ट बुला लिया।

‘पागल हैं क्या तू क्या कर रहा आंटी को छोड़ रहा घर छोड़ रहा…4 दिन के प्यार के लिये’ रितिक ने नितेश पर चिल्लाते हुये कहा। ‘4 दिन नही..7 साल और मां तो हमे समझ ही नही रही है क्या करूँ मैं…उसका चेहरा देखो.’ नितेश ने उसकी ओर देखते हुए कहा। ‘तो भाई कुछ बीच का रास्ता निकाल न उसे भी रख मां को भी’ रितिक ने कहा। ‘ तू साइन करेगा या नहीं ये बता’ ‘करना ही पड़ेगा’ रितिक ने श्रेया की ओर देखके कहा।

श्रेया की दोस्तों ने उसके ज़रूरत के सभी सामान ले लिया औऱ वो उसे समझाने लगी कि अभी भी वक्त हैं सोच ले…! मगर अब वक्त नही था। दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली बालिग थे… गवाह थे…सात फेरे न हो सके मगर देश के कानून ने उन्हें एक होने की इजाजत दे दी थी।

दोस्तो से विदा लेने का समय आया। रितिक ने पॉकेट के सारे पैसे नितेश को थमा दिए मना करने के बावजूद। ‘बताना यार कोई दिक्कत होगी तो’ और ये कहकर रितिक ने नितेश को गले लगा लिया।

ट्रेन में रात मानो कट ही नही रही थी…’हम गलत तो नही कर रहे..? क्या ज़रूरत थी? हम मिले ही क्यों? मैंने आज ये क्या किया …अपने पापा का सिर झुकाया… नितेश को उसकी फैमिली से अलग कर दिया..भगवान माफ नही करेगा मुझे..हे भगवान..’ वो नितेश के कंधे पर सिर रखकर यही सोच रही थी।

‘क्या गलत तो नही कर दिया मैंने… मां के बिना कैसे रहूंगा,जॉब भी नहीं हैं क्या करेंगे उस घर मे..? इसे अच्छी लाइफ दे पाऊँगा? हमारा फ्यूचर क्या होगा..’ ये सब सोचता हुआ नितेश श्रेया को सोता समझकर उसके सिर पर अपना सिर रखकर खामोश हो गया..!

ट्रेन मंद गति से चली जा रही थी एक नई जिंदगी की ओर…! वो ज़िंदगी जो उन्होंने कल्पनाओं में भी नही सोची थी…!

‘जी भइये नितेश बोल रहा हम बस पहुँच गये आप स्टेशन पर आ जाइये.. घर साफ कर दिया आपने… हाँ आप आइए..!’ नितेश को फोन पे बात करता सुन श्रेया उठ गईं…’सुबह हो गई’ उसने पूछा। ‘गुड मॉर्निंग हमारी पहली सुबह साथ में मुबारक हो’ उसने श्रेया के माथे पे किस करते हुये कहा। ‘बस पहुँच गये..भइये जो घर की देखभाल करते हैं वो आ रहे लेने हमें’ तुम चाय पियोगी..’ उसने उसके बालों को संवारते हुए कहा। ‘ भइये ..?उसने हैरानी से पूछा’ ‘हां हम सब उन्हें भैया नहीं भइये कहते हैं वो बहुत अच्छे हैं जब हम वहां जाएंगे तो वो अपने घर चले जाएंगे फिक्र मत करो’ नितेश ने कहा। ‘अब घर जाकर ही कुछ पियूंगी..’ श्रेया ने कहा।

सफर खत्म होने को आ गया था मगर अब जो सफर शुरू होना था वो सफर अंग्रेज़ी के suffer से कम नही था।

‘..बताया हैं अंकल ने सब..! तुम रहो आराम से मगर इस उम्र में इतना बड़ा फैसला करने की क्या ज़रूरत थी..? चलो कोई नही अब खुश रहो दोनो और क्या बोले..’ पूरे रास्ते भइये अपना ज्ञान बांटते और श्रेया को घूरते चले आये। जब वो घर पहुँच गये तो भइये ने घर मे श्रेया का बैग रखा

और चाभी नितेश के हाथ में थमा कर चले गए।

‘ये हमारा दूसरा घर पापा ने कहा था हममें से किसी एक को देगें.. आज मुझे मिला मेरे मां-बाप के बदले…ख़ैर तुम जाओ आराम करलो.. मैं किचन में देखता हूँ कुछ खाने को..’ नितेश ये बोलता हुआ किचन मे चला गया।

श्रेया सारा सामान ऊपर रूम में ले जाने को उठाने लगी। समान बहुत भारी था कुछ दूर तक वो यूँ ही चली गयी मगर सीढियां नही चढ़ पाई और आखिरकार गिर गयी।

आवाज़ सुनकर नितेश बाहर आया श्रेया ज़मीन पर थी और समान उसके ऊपर..! ‘पागल हो क्या..मैं रखता अभी न’ उसने डांटते हुए उसे उठाया..गोद में लेकर रूम में चला गया। ‘लगी कहाँ लगीं इतनी ऊपर से गिरी लगी तो होगी..’ ‘नही लगी ठीक हूँ किचन में कुछ हैं मैं बना दूँ कुछ’ ‘नही तुम रहने दो मैं चाय चढ़ाई हैं भइये ने किचन में सारा सामान रखा हैं।’ नितेश ने कहा।

चाय पीने के बाद नितेश श्रेया को सुलाकर नीचे आ गया। उसे आज कुछ अच्छा नही लग रहा था। आखिरी बार वो पूरी फैमिली के साथ दीदी की शादी के बाद यहां आया था..तब घर कुछ और ही था..आज तो ये दीवारें भी मानो अजीब नजरों से देख रही..ये फर्श मानो अभी पैरों तले खिसक जाएंगे सब कुछ मानो खाने को दौड़ रहा था.. उसे इतनी उलझन हुई कि उसने खिड़की-दरवाज़े सब खोल दिए।

‘तू कब आया और कौन- कौन आया’ पड़ोसी राज की आवाज़ सुनकर एक बार तो नितेश चौक ही गया। ‘अरे राज कैसा हैं भाई.. कोई नही आया बस मैं हूँ और…..’ नितेश कहते-कहते रुक गया। ‘और..? और कौन हैं क्या हो गया’ राज ने उसके कंधों को सहारा दिया।

नितेश ने सबकुछ उसे बता दिया। ‘ओहो ये मोहब्बत भी न पूरी दुनिया छुड़वा देती हैं एक अलग दुनिया के चक्कर में’ भाई गलत तू भी नही हैं वो लड़कीं भी नही हैं और तेरे परिवार वाले भी नहीं… बस वक़्त खराब चळ् रहा हैं तेरा सब बढ़िया होगा। कुछ काम-धंधा सोचा हैं कि नहीं? ‘फिलहाल कुछ नहीं हैं मेरे पास सिवाय उसके..’ नितेश ने अपने रूम की ओर देखते हुए कहा।’

. तो भाई प्यार पेट नही भरता सिर्फ जॉब भरती हैं उसका कुछ सोचा..? मेरे साथ करेगा काम?’ ‘यार अभी बहुत ज़रूरत हैं तो मना नहीं कर सकता।’ हम्म जानता हूँ बस भाई एस ब्लॉक में मेरा गैराज देखना हैं देखना भी क्या हैं बस पैसों का हिसाब रखना है..देख भाई आदमी बहुत है बस एक बन्दा चाहियें यक़ीनमन्द हो..! ‘

इस वक़्त अगर नितेश को राज अपने घर की रखवाली का काम भी दे देता तो शायद वो ये भी करनें को तैयार था। उसे शुरुआत करनी थी बस कहीं से। ‘कब से संभालनी हैं..? नितेश ने सारी बातें कर ली और काम को तैयार हो गया।

वो वापस घर मे घुसा ही था कि श्रेया रोती हुई भागती हुई उसके गले से आ लगी। ‘कहाँ चले गए थे मुझे छोड़कर हां’ …’कहाँ जाऊंगा मैं यहीं तो था इतना मत डरो.. अब कहीं नहीं जाऊंगा और जाऊंगा भी खान घरवालों ने तो निकाल दिया न… नितेश ने कहा। उसने श्रेया को राज के बारे में और उसके गैराज संभालने के ऑफर के बारे में बताया। ‘क्या ज़रूरत हैं अभी इन सब की हम कुछ दिन रह सकते बाद की बाद में देखेंगे न तुम कहीं न जाओ…’ श्रेया ने नितेश से कहा।

‘हाँ आज की आज देखते हैं तुम तो कल से सो रही हो…और मेरी नींद हराम हैं अब मैं सोऊंगा चैन से…श्रेया की बात टालते हुए नितेश ने कहा। ‘हाँ तुम सो जाओ …तबतक मैं कुछ खाने को बना लूं’ अरे तुम रहने दो वहाँ पता नहीं क्या करो.. गिरती-पड़ती रहती हो..तुम्हे भूख लगी हैं तो बताओ’ नितेश ने पूछा। ‘नहीं तुम सो जाओ..’ श्रेया बोली। ‘और तुम क्या करोगी..मेरे पास रहो’…मेरी बाहों में..! उसे बाहों में खींचकर नितेश बोला।

नितेश लेटा हुआ अपनी बाहों में सिमटी श्रेया को देख रहा था..वो इस बात से अंजान गुमसुम सी अपने बालों मे उलझीं सी न जाने कहाँ गुम थी…वो कभी ऐसी नही थी जो आज बन गयी थी..’पहली बार मैं तुम्हे इतनी पास से देख रहा हूँ’…’हाँ लो और पास से देखो..’श्रेया अपने चेहरे को उसके करीब लाकर बोली। वो उसके सीने पर सिर रखकर सो गई। मां के गोद के बाद शायद इतनी खूबसूरत नींद उसे दोबारा कभी आयी होगी। यूँ ही वो घन्टो सोये रहे।

आखिरकार नींद खुली तो याद आया आज से ही राज की गैराज भी देखनी हैं वो चुपचाप बिना आवाज किये उठ गया। नहाकर किचन में चला गया…टीवी रिचार्ज की ताकि श्रेया बोर न हो, उसे उठाने चला गया.. वो बेड पर नही थी।

वो डर गया आखिर कहाँ चली गयी. तभी बाथरूम का दरवाजा खुला…’क्या हुआ तुम ऐसे क्यों देख रहे?’ ‘तुम बताकर नही जा सकती कहीं’ उसका गुस्सा प्यार में बदल गया और उसे बाहों में भर लिया। ‘मैं जा रहा हूँ तुम टीवी देखना रिचार्ज हैं और बाहर अभी मत निकलना, कोई आये तो दरवाज़ा मत खोलना” नितेश ने कहा श्रेया रोकना चाहती थी मगर ‘जल्दी आना’ इससे ज्यादा नही बोल सकी।

वो चला गया। दरवाज़ा बन्द हुआ तो सीधा उसकी दस्तक के साथ ही खुला। “क्या किया आज” नितेश ने श्रेया से पूछा। ‘बस कुछ खास नहीं’ एक खामोश सा जवाब आया…कुछ खाया फिर सवाल हुआ… हम्म फिर छोटा सा जवाब आया.. ‘फीवर हैं क्या तुम्हें..हमेशा फीवर क्यों आ जाता?’ नितेश ने गले पर हाथ लगाते हुये कहा।

‘तो तुम कबतक उनसे गुस्सा रहोगे… मिल लो न ऐसा करो सन्डे को तुम मिल आओ घर वालो से,पापा कभी नही बुलाएंगे मगर मम्मी के बहाने वो भी यहीं चाहते हैं तुम लौट आओ’ श्रेया इनदिनों के कशमकश से इतर अपने कंधों पर सिर रखे नितेश के बालों को सहलाती हुई बोली। ‘…तो तुम्हे भी बुलाये न…अकेले नही जाऊंगा फोन पे बात हो रही काफी हैं’…उसने श्रेया के हाथों को थाम लिया।

वो जब भी उसके मांग में सिंदूर देखता तो उसे खुद पर भी यकीं नही होता था आखिर ये क्या और कैसे हुआ था मगर उसकी मुस्कुराहट के आगे अब भूल जाता था श्रेया भी सिंदूर हमेशा बालों में छुपा कर रखती चूड़ी या मंगलसूत्र कुछ भी नही पहना उसने । कहने को ये सुहाग की निशानियां हैं मगर इन मासूम कंधों पर एक बोझ से ज्यादा कुछ नही थी..।

‘तुम अकेली रहती हो न पूरा दिन..बोर नही होती’ नितेश ने पूछा ‘इसके अलावा कोई और ऑप्शन हैं मेरे पास..? वो बोली..,’ये तुम्हे बुखार क्यों रहता इतना..कोई दिक्कत हैं क्या जांच कराई थी?’ उसने उसके मुंह से थरमामीटर निकालते हुए कहा। ‘हम्म पापा ने कराया था रिपोर्ट उन्ही के पास आई होगी’।

नितेश अब आर्थिक रुप से सक्षम हो चुका था। उसने राज की वो गैराज खरीद ली थी और राज को अपना रहनुमा बना लिया था। राज का घर आना-जाना था मगर श्रेया को वो बिल्कुल ठीक नही लगता था। न जाने क्यों मगर वो नितेश से उसके बारे में हमेशा कहती कि ‘तुम जब घर पर नही होते तो वो क्यों आता हैं?’ मगर नितेश यह कहकर टाल देता कि ‘तुम गलत सोचती हो’

श्रेया की आशंका सही थी। एक दिन जब नितेश घर पर नही था। राज ने दरवाजा खटखटाया। ‘कौन?’ ‘मैं हूं’ श्रेया आवाज़ पहचान गयी वो दरवाजा नही खोलना चाहती थी मगर उसने दरवाजा खोल दिया।

शायद ज़िंदगी की दूसरी बड़ी गलती कर दी पहली तो वो घर छोड़कर कर ही चुकी थी। ‘कुछ कर रही थी..इतनी देर लग गयी दरवाजा खोलने में क्यों?’ राज घर के अंदर आ गया और दरवाजा बंद करने लगा। ‘वो नही हैं अभी यहां..काम क्या हैं? श्रेया ने दरवाजा खोलने की असफल कोशिश की।

‘हर बार नितेश से काम हो ज़रूरी नही हैं..आप से भी हो सकता हैं…काम’ राज ने दरवाजा बंद ही कर दिया। ‘आप बैठिए मैं चाय बनाकर लाती हूँ’ श्रेया वहां से निकल कर नितेश को कॉल कर बुलाना चाहती थी। ‘मैं चाय नहीं पीता तुम बैठो न मैं कोई मेहमान थोड़े ही हूँ’ राज उसके करीब जाने लगा।

श्रेया उसकी नियत समझ चुकी थी ‘मैं अभी आती हूँ’ ये कहकर वो अपने कमरें की ओर भागी। वो सीढियां चढ़ती चली जा रही थी। ‘मैं वहाँ भी आ सकता हूँ श्रेया..’ वो सीढ़ियों की ओर यह कहते हुए जाने लगा। श्रेया कमरे में घुस गई औऱ दरवाजा बंद करने ही लगी कि राज ने दरवाजे को धक्का देकर खोल लिया। “ये क्या कर रहे हैं इस तरह दोस्त की पत्नी के कमरे में घुसते हैं..”चीख़ती हुई श्रेया बोली। गुस्से से ज्यादा वो डरी हुई थी..

‘देखो तुम्हारे पति की इतनी मदद की हैं कुछ बदले में मिलना भी तो चाहिए न..तुम मुझे अच्छी लगती हो..उसे कुछ पता नही चलेगा वादा हैं मेरा…” राज ने दीवार पे टँगी नितेश की तस्वीर को फेंकते हुये कहा। ‘जब वो आये तो उनसे बात करिए जाइये यहाँ से’ श्रेया को जो भी समझ आ रहा था वो बोल रही थी मगर राज कुछ समझने नही आया था अबतक जो भी मदद की उसने इसी दिन के लिये की थी।

‘ इतना क्या नाटक कर रही हो उसके साथ भाग सकती हो मेरे साथ एक बार सो नही सकती..?’ उसने बड़ी ही बेशर्मी से अपनी इस मांग को न्यायोचित भी ठहरा दिया।

वो दरवाजे के सामने खड़ा था श्रेया ने हिम्मत की और उसे धकेल कर कमरे से बाहर आ गयी..वो सीढ़ियों से तेज़ी से नीचे उतरने लगी मगर राज सीढ़ियों पर उससे ज़बरदस्ती करने लगा, वो खुद को जितना बचा सकती उसने जान लड़ा दी ‘नितेश… नित…श पापा.. पा’ वो चीख़ती रही मगर अपने अहसानो का बदला लेने में राज पागल हो गया था… और इसी दौरान श्रेया सीढ़ियों से फिसली औऱ एक आखिरी चीख के साथ ज़मीन पे आ गिरी। राज घबरा गया उसने श्रेया की मरणासन्न स्थिति…बहता खून देखा औऱ वहां से भाग निकला।

घर में सन्नाटा… ज़मीन में खून से सनी श्रेया घण्टो पड़ी रही। शाम को नितेश वापस आया। दरवाजा कई बार खटकने के बाद भी जब नही खुला तो वो परेशान हो गया। उसने राज को कई कॉल किये कोई जवाब नही मिला। आखिरकार वो किसी तरह छत के रास्ते घर मे दाखिल हुआ तो श्रेया को इस हाल में देख वो मानो बदहवास सा हो गया।

आनन फानन में उसे अस्पताल ले गया। मगर रास्ते भर वो इस ख्याल से चलता रहा कि ‘तुम जाना नही कहीं श्रेया’…. पूरी रात अस्पताल में रहने के बाद सुबह रिपोर्ट के साथ डॉक्टर ने उसे केबिन में बुलाया। नितेश चुपचाप कुर्सी पर बैठ गया ‘वो बच जाएगी..?’ ये सवाल पूछकर वो फ़ूटकर रोने लगा।

‘संभालिये खुद को क्या आपको पता हैं उन्हें दिमागी बुखार की शिकायत हैं?’ डॉ ने नितेश से पूछा। ‘दिमागी बुखार… न..न..नही नही ऐसा कुछ नही हैं उसे हमेशा बुखार रहता था हल्का फुल्का बस..’ नितेश ने घबराकर कहा। जी …वो ही लक्षण हैं आपको जांच करानी चाहिए थी..देखिए चोट उतनी गहरी नही हैं हाँ टाइल्स पर गिरी हैं तो खून बहुत बह गया हैं लेकिन उनकी ये तकलीफ बढ़ गयी हैं और बुखार औऱ खून ज्यादा बहना एक समय मे हो गया इसलिए दिमाग कोई संकेत न ले पा रहा न दे पा रहा।’ डॉ ने कहा।

“आप चाहे तो कुछ दिन में डिस्चार्ज करा लें यहां पे रखने का भी फिलहाल कोई फायदा नही हैं..” डॉ ने फिर कहा।

‘ मैं श्रेया को लेकर अस्पताल में रह लूंगा मगर घरवालों को कुछ नही बताऊंगा। मगर मां उनसे भी..?’ नितेश श्रेया के साथ कई दिन अकेला अस्पताल में रहा। इतने दिन श्रेया के बॉडी ने कोई रेस्पॉन्स नही किया।

आखिरकार डिस्चार्ज होने के बाद श्रेया को लेकर वो घर आ गया। “घर मे रहूंगा तो काम कैसे होंगे? बाहर गया तो श्रेया के पास कौन होगा..?” वो इन सवालों में पूरी रात जूझता रहा।

सुबह हुई…श्रेया की खामोशी की अभी उसको आदत नही लगी थी। वो कई बार सवाल करता और बोल क्यों नही रही कहता हुआ गुस्सा जाता…और फिर याद आता कि अब जवाब शायद कभी न मिले ही न तो चीखकर रोता।

कई दिन वो घर मे तन्हा सा भटकता रहा। घर के एक कोने में पड़ी श्रेया उससे देखी नही जाती। दिनभर उसके पास बैठा रहता, कभी बालों को सहलाता, कभी कहानियां सुनाता वो और फिर खुद की कहानी पर बेहिसाब रोता। वो सब सुनती मगर न हाथ उठाया जाता औऱ न ही सिर हिलाया जाता…! कभी कभी वो कहना चाहती बस करो.. कितना रोगे ..छोड़ो मुझे और जाओ अपने घर…मगर न दिमाग साथ था न ही ज़ुबाँ….अब नितेश को मां की याद आ ही गयी ज़रूरत महसूस हुई। वो होती तो आज एक सहारा होता। ….और कितने दिन कितने हफ्ते कितने महिने वो यूँ ही रहेगा। काम रुक गया। राज भी न जाने कहाँ चला गया वो यही सोचता रहता।

“माँ… आप आ जाओ मुझसे और नही हो रहा..” उसने फोन कर मां को सब बताया। “बुला रहा है मेरा बेटा कह रहा मेरी ज़रूरत हैं आखिर ये बात उसे समझ आ ही गयी” नितेश की मां ये भूल गयी कि आखिर बुलाने की वजह क्या हैं मगर ये याद रह गया कि बेटा बुला रहा।

वो नोएडा को आ गयी। ‘ये क्या हाल कर लिया हैं अपना खाना नही खा रहा क्या…चेहरा तो देखो..क्या भेजा था औऱ क्या ही हो गया’ घर के घुसते ही मां का प्यार उमड़ पड़ा। “मां श्रेया अंदर हैं” वो मां को उसके पास ले गया। “ये हाल हो गया कुछ ही सालों में..चल तू नहा धो ले मैं यही हूँ ठीक।” मां को बुलाने का फैसला उसका अच्छा फैसला था ऐसा नितेश को लग रहा था…मगर था नहीं..!

वो तैयार होकर गैराज चला गया। माँ श्रेया के कमरे में गई।

“…ह्म्म्म ये क्या हो गया चाँद से चेहरे को हां.. अब तो सिर्फ दाग रह गया हैं.. हैरान हूं मैं मेरा बेटा अभी भी तुमको रखे हुये हैं इस शक्ल के साथ, कोई औऱ होता अस्पताल में छोड़ कर भाग जाता…. परवरिश हैं हमारी कि तुमको जब खुद के तुम्हारे बाप ने छोड़ा तो ये लेकर चला आया।”

“जानती हो बुरे कर्मो का नतीजा कभी अच्छा नही होता…ये क्या..रो रही तुम तो..रो और रो जितना हमे रुलाया उतना रो.. बाप की इज्जत उछाल कर अपना घर नही बसाया जाता उनके आंसू कभी खुश नही रहने देते..औऱ आज जिस हाल में तुम आ गयी हो न वो हमारी आह का नतीजा है..!” अपनी दिल की भड़ास नितेश की मां निकाल रही थी कानों में जाती आवाज़ श्रेया को अंदर से औऱ भी तोड़ रहे थे।

उसकी दवा का समय था। मगर नितेश की माँ कहीं और अपनी ममता की कहानी कहने में मशगूल थी। ‘हां मेरा बेटा मुझे देखते ही पागल हो गया..पछता रहा था वो इस शादी से…हम्म हम्म…..बातें घन्टो चलती रही। जिस से कहा उस वक़्त मजाक उड़ाया था उस उसको नितेश की माँ फोन कर ये खबर दे रही थी।

समय बीतता गया। जिन दवाओं पर वो ज़िंदा थी वो न मिलने पर श्रेया को दौरे पड़ने लगे। वो घन्टो छटपटाती रही मगर उसकी सिसकियां जो सुन ले वो कान दुनिया की बातों में व्यस्त थे।

..घर का दरवाजा खुला देख नितेश अंदर आते ही श्रेया के पास चला गया।

“तो सो रही हो…मां के साथ कैसा लगा उन्होंने जब प्यार से सिर सहलाया होगा तो अपने माँ की याद आयी होगी न? अपना बैग रखते हुए वो बोला। “क्या क्या बातें की उन्होंने” “उन्होंने सूप पिलाया होगा न और दवा भी खिला दिया होगा न तभी चैन से सो रही। मैं काश उन्हें पहले ही बुला लेता यहाँ.. अच्छा अब आंखे तो खोलो”

“दवा..? दवा देनी थी क्या?” माँ ने फोन काटते हुए कहा।

…माँ आपने दवा नही दी? बोलकर गया था न मैं..मैं अभी दे देता हूं” हड़बड़ाकर वो उठा औऱ दवाएं उठायी। सारी दवाये यूँही पड़ी थी माँ ने दिन की कोई भी दवा श्रेया को नही दी थी। “श्रेया उठो..मुँह खोलो देखो सॉरी आज दवा भूल गए..बस मुँह खोलो मैं खिला रहा हूँ..”

उसकी बाह पकड़कर उसने उठाने की कोशिश की। जैसे ही उठी वो फिर बिस्तर पर जा गिरी। नितेश ने उसकी कलाई पकड़ी.. कोई हरकत नही सांसे रुक चुकी थी शायद कई घन्टो पहले ही….उसके हाथ अपने हाथ मे लेकर वो ज़मीन पर धड़ाम से बैठ गया…श्रेया के हाथों को गौर से देखा…उसके नाखून टूटे-फूटे हुए थे…बिस्तर को उसमें नोच डाला था..तड़पी थी वो बेतहाशा…. आंखों के नीचे आंसुओ की धार जो कानों तक जा रही उसने अपने निशान छोड़ दिये थे..होठ सूख कर काले पड़ गए थे….!

श्रेया ने अपनी तकलीफ़ से पार पा लिया औऱ हमेशा के लिये खामोश हो गयी मगर उसके पीछे अपनी ज़िंदगी अपना परिवार छोड़ने वाले नितेश को भी खामोश कर गयी। उसने किसी पे इल्ज़ाम नही लगाया न सवाल ही किया न उसे राज की हकीकत ही पता चली औऱ राज भी लौटकर नही आया। नितेश वापस घर नही गया जहां था जो कर रहा था उसने वहीं जारी रखा और यही उसकी खामोशी उसकी उनलोगों के लिये सज़ा बन गयी जो इसकी वजह थे….!