बुझ गया एक टिमटिमाता सितारा…

जब हम कोरोना से लड़ रहे थे तो वो कैंसर से जंग कर रहे थे, जब हम उनकी आखिरी फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ देखकर उनकी अदाकारी के कायल हो रहे थे तो वह अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे। और मंगलवार को आखिरकार बॉलीवुड का ‘पान सिंह तोमर’ इस जंग में हार ही गया। बॉलीवुड में अपनी अदाकारी से नाम कमाने वाले हरफनमौला एक्टर इरफान खान अब नहीं रहे।

यकीन नहीं होता मगर 54 साल की छोटी सी उम्र में अब वो हमारे बीच नहीं है। ब्रेन कैंसर से जूझ रहे इरफ़ान खान ने मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में मंगलवार को अपनी आखिरी सांसें ली। तमाम हिट फिल्में देने वाले इरफान अभी 4 दिन पहले ही अपनी मां सईदा बेगम के देहांत के गम से उबरे थे। तबियत की नासाज़ी के कारण वो उनसे मिलने नहीं जा सके थे। उन्होंने वीडियो कॉल पर आखिरी बार उन्हें देखा था। शायद इसीलिए वह अपनी मां के पास ही चले गए। दोपहर 3:00 बजे मुंबई के वर्सोवा कब्रिस्तान में उन्हें सुपुर्द ए खाक कर दिया गया। ताउम्र प्रशंसकों की भीड़ से घिरे रहे इरफान कब्रिस्तान में सिर्फ चंद लोगों के साथ थे। सामाजिक दूरी के साथ देशप्रेमी और सच्चे मुसलमान इरफान खान भारत माँ की गोद मे दफ़न कर दिये गए।

जब भी इस सितारे का जिक्र आता है तो बोलती आंखों की अदायगी ज़हन में उतर आती है। उनके बोलने का लहजा सभी चेहरे पर मुस्कुराहट ला देता है। उनका वो आखिरी ऑडियो मैसेज कोई कैसे भूल सकता है। जो उन्होंने कहा था की “कहावत है कि वन लाइफ गिव्स यू लेमन यू मेक अ लैमिनेट….बोलने में अच्छा लगता है लेकिन सच में जिंदगी आपके हाथ में नींबू थमा देती हैं तो शिकंजी बनाना मुश्किल हो जाता है लेकिन आपके पास चॉइस भी क्या होती है सिवाय पॉजिटिव रहने के” उनकी आवाज में वह खनक इस ऑडियो में न जाने कहां गुम हो गई थी। उनका ये कहना कि “मैं आपके बीच हूं भी और नहीं भी” उनके अंदेशे को बयान करता है कि न्यूरो इनडोक्राइन ट्यूमर यानी कि ब्रेन कैंसर से जूझते हुए उन्हें ठीक होने की उम्मीद कम थी।

इरफान 2018 से इस बीमारी से जूझ रहे थे इरफ़ान खान का जाना बॉलीवुड के लिए नहीं पूरे देश के लिए एक धक्का है। ऐसा शख्स जो खुद के बलबूते पर आज इस मुकाम पर आ पहुंचा था कि उनका नाम होना ही हिट फिल्मों की गारंटी बन चुका था। पीएम मोदी से लेकर राहुल गांधी तक सभी अपनी संवेदनाएं जता रहे हैं। बॉलीवुड भी नम आंखों से अपने पान सिंह तोमर को आखरी विदाई दे रहा है मगर आखिरी बार न देख पाने का गम है कि खत्म ही नहीं होता। छोटे पर्दे से एक्टिंग की शुरुआत ‘श्रीकांत’ और ‘भारत एक खोज’ से की थी जिसके बाद अपनी अदायगी के बल पर आगे बढ़ते ही गए और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बॉलीवुड में उन्होंने 1988 में आई सलाम बॉम्बे से की थी। जिसके बाद मकबूल, द लंच बॉक्स, पीकू,तलवार, हिंदी मीडियम और अंग्रेजी मीडियम जैसी फिल्मों में अपना कमाल दिखाया।

श्रीमद्भागवत गीता में लिखा हैं कि सिर्फ शरीर मरता हैं आत्मा सदैव ही जिन्दा रहती हैं। आज हमने सिर्फ उस शरीर को खोया हैं जिसे हम रूपहले पर्दे पर निहारते नही थकते थे। उनकी आत्मा और वो ख़ुद हमारे पास हैं औऱ रहेंगे। जब किरदार में डूब जाने की बात होगी तब वो होंगे..जब ज़मीन से आसमाँ तक के सफर की बात होगी तब वो होंगे.. जब भी कभी एक सितारे में छुपे नेक इंसान की बात होगी तब वो हमारे ज़ुबाँ पर होंगे… वो सदैव दिल के उस कोने में रहेंगे जहाँ से उन्हें सिर्फ आखिरी सांस ही भुला सकती होगी।

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